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नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती स्पेशल : नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी से जुड़े हैरान कर देने वाले रोचक जानकारीयाँ | Netaji SubhashChandra Bose Jayanti Special: Interesting Information About Netaji SubhashChandra Bose

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती स्पेशल : नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी से जुड़े हैरान कर देने वाले रोचक जानकारीयाँ | Netaji SubhashChandra Bose Jayanti Special: Interesting Information About Netaji SubhashChandra Bose

Subhash Chandra Bose Gyanworlds

"तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" का नारा देने वाले वीर नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मेरा सलाम ! जी हाँ दोस्तो आज हम बात करने वाले है हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस जी के बारे में जिन्होंने अंग्रेज़ सरकार के नाक में दम कर रखा था। इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिसा के कटक शहर में हुआ था तथा जिनकी मौत का पता आज भी एक रहस्य बना हुआ है , कहते है इनकी मृत्यु  18 अगस्त 1945 को हुआ था। तो चलिए दोस्तो शुरू करते है-


1. सुभाषचंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस और माता प्रभावती को 14 संताने थी , जिसमे 6 बेटियां और 8 बेटे थे। इन सभी मे सुभाषचंद्र बोस इनके नौवीं संतान और पांचवे बेटे थे।

2. इनके पिता पहले सरकारी वकील थे फिर बाद में इन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। इन्होंने कटक के महापालिका और विधानसभा के सदस्य के रूप में लंबे समय तक काम किया। अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें 'रायबहादुर' का खिताब दिया था।


3. कटक के प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल में प्राइमरी शिक्षा पूरी कर इन्होंने रेवेनशा कॉलेजिएट में 1909 में दाखिला लिया। 1915 में इंटरमिडिएट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद इन्हने द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की।

4. नेताजी ने विवेकानंद जी के साहित्य का मात्र 15 वर्ष की आयु में पूरा अध्ययन कर लिया था।

5. 1916 जब वे दर्शनशास्त्र में बी.ए. के छात्र थे तब प्रेसिडेंसी कॉलेज के छात्रों और अध्यापको के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। जिसका नेतृत्व नेताजी ने किया। इस कारण इन्हें कॉलेज से एक साल के लिए निकल दिया गया और परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

6. इनके पिता की इच्छा थी कि सुभाष चंद्र बोस आई.सी.एस. बने। इनकी यह इच्छा इन्हने 1920 में आई.सी.एस. की परीक्षा में पास होकर पूर्ण की। परंतु 22 अप्रैल 1921 को इन्होंने त्यागपत्र दे दिया क्योंकि वे अंग्रेजों के अधीन काम करना नही चाहते थे।


7. सुभाष चंद्र बोस ने सरदार भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रुकवाने का बहुत प्रयास किया। उन्होंने गांधी जी से कहा कि वे अंग्रेजों से किया अपना वादा तोड़ दे। पर गांधी जी नही माने और भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी से नेताजी नहीं बचा पाए।

8. अपने पूरे जीवनकाल में सुभाष चंद्र बोस 11 बार जेल गए।

9. 1933 में इन्हें देश निकाला दे दिया गया। 1934 में पिता की मृत्यु पर और 1936 में लखनऊ कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने के लिए ये दो बार भारत आये , पर दोनों ही बार इन्हें अंग्रेज़ सरकार ने गिरफ्तार कर कुछ दिन जेल में रखकर वापस यूरोप भेज दिया।

10. जब नेताजी अपना इलाज करवाने यूरोप गए हुए थे उन्हें अपनी किताब लिखने के लिए अंग्रेज़ी टाइपिस्ट की जरूरत थी। तब उनके एक मित्र ने उन्हें एमिली शेंकल नाम के एक ऑस्ट्रियन महिला से मुलाकात करवाई। जिनसे इन्हें प्रेम हो गया और इन दोनों ने 1942 में बाड-गास्टिन में हिन्दू रीति रिवाज से शादी रचा ली। एमिली ने विएना में एक पुत्री को जन्म दिया। जिसका नाम नेताजी ने अनिता बोस रखा।

11. सन 1933 से 1936 तक सुभाष चंद्र बोस जी यूरोप में रहे। जहां इटली के शासक मुसोलिनी ने इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहायता प्रदान करने का वचन दिया।

12. जब ये यूरोप में थे तब नेहरू जी की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। तब नेताजी ने वहाँ जाकर उन्हें सांत्वना दी।

13. गांधीजी को सबसे पहले 'राष्ट्रपिता ' कहकर  नेताजी ने ही संबोधित किया था।

14. 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए गांधी जी ने सुभाष जी को चुना। यह कांग्रेस का 51वां अधिवेशन था इसलिए इन्हें 51 बैलो से सजी रथ में बैठा कर स्वागत किया गया।  29 अप्रैल 1939 को इन्होंने गांधी जी और उनके सहयोगियों के व्यवहार से दुखी होकर सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।

15. विठ्ठलभाई पटेल (सरदार पटेल के भाई) और सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में मंत्रणा की। इसमे इन्होंने गांधीजी के नेतृत्व की जमकर निंदा की। इसके बाद विठ्ठल जी बीमार पड़ गए , तब बोस जी ने उनकी सेवा की परंतु वे बच नही सके।

16. विठ्ठलजी  ने मृत्यु से पूर्व अपनी सारी संपत्ति नेताजी के नाम कर दी जिसे सरदार पटेल ने नही स्वीकारा और उन पर मुकदमा कर वे ये केस जीत गए , और सारी संपत्ति गांधी के हरिजन सेवा कार्य को भेंट कर दी। असल मे सरदार पटेल जी गांधीजी के सामने सुभाष को नीचा दिखाना चाहते थे इसलिए उन्होंने ऐसा किया।

17. 3 मई 1939 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। द्वितिय विश्वयुद्ध के समय इन्होंने अंग्रेज़ो के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया। और कलकत्ता स्थित होल्वेट स्तम्भ जो भारत की ग़ुलामी का प्रतीक था नेताजी ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

18. इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने फारवर्ड ब्लॉक के सभी नेताओं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कैद कर लिया। परंतु सुभाष जी ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दी और उनकी हालत खराब होती गई जिससे अंग्रेजों को उन्हें रिहा करना पड़ा। किन्तु अंग्रेज सरकार यह भी नहीं चाहती थी कि वे मुक्त रहे इसलिए उन्हें उनके घर मे नज़रबंद कर के बाहर पुलिस खड़ा कर दिया।

19. इन्हने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की।

20. 29 मई 1942 के दिन वे अडोल्फ हिटलर से मिले। परंतु हिटलर को भारत की आज़ादी में कोई रुचि न थी इसलिए उसने सहायता करने का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।

21. हिटलर ने माईन काम्फ नामक आत्मचरित्र में भारत और भारतीयों की काफी बुराई की थी। इस पर नेताजी ने विचार व्यक्त करते हुए हिटलर को बहुत खरी-खोटी सुनाई। इसके लिए हिटलर ने उनसे माफी मांगी और माईन काम्फ के अगले संस्करण में वह परिच्छेद हटाने का वचन दिया।

22. 21 अक्टूबर 1943 के दिन सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज का गठन किया। वे खुद इस सरकार के युद्धमंत्री बने। इसे कूल 9 देशो ने मान्यता प्रदान की। आज़ाद हिंद फौज में अंग्रेज़ो की फौज से पकड़े गए युद्धबंदियों को भी भर्ती किया गया।अपनी सेना को प्रेरित करने के लिए इन्होंने अनेक नारे दिए जैसे- "तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा"और "दिल्ली चलो" । अपनी फौज के साथ मिलकर नेेताजी नेे भारत पर आक्रमण कर अंडमान निकोबार द्वीपसमूह पर विजयी प्राप्त की। इन द्वीपो को 'शहिद द्वीप' और ' स्वराज द्वीप' नाम दिया गया। 

23. यह विश्व की पहली ऐसी फौज थी जिसमे महिलाओं की भी भर्ती की गई थी। इनके लिए झांसी की रानी रेजिमेंट  बनाई गई थी।

24. बाद में इस फौज ने इम्फाल और कोहिमा की ओर अपना रुख किया। लेकिन यहां पर अंग्रेज़ जीत गए।

25. जब फौज पीछे हट रही थी तब जापानी सेना ने नेताजी के भागने की पूरी व्यवस्था कर दी। किन्तु नेताजी ने झांसी की रानी रेजिमेंट के साथ सैकडों मील चलने का फैसला किया। इस तरह इन्होंने सच्चे नेतृत्व का आदर्श प्रस्तुत किया।

26. अब तक मिली जानकारीयों के अनुसार नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू एयरपोर्ट पर उनके विमान के क्रैश होने से हुई थी।

27. नेताजी की अस्थियों को जापान के रैंकोजी मंदिर में आज भी संभाल कर रखा गया है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को शत-शत नमन !




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